सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं; जन प्रतिनिधि सिर्फ वोट लेने तक सीमित, प्रशासन भी सोया कुम्भकर्णी नींद
आवाज़ ए हिमाचल
मनीष ठाकुर, भरमौर (चम्बा)। जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र भरमौर के कई गांव आज आज़ादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी ऐसे हैं, जहां के लोग अपने आपको पिछड़ा महसूस करते हैं। इस दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में कई ऐसे नदी-नाले हैं, जिनको लोग अपनी जान को जोखिम में डालते हुए पार करते हैं। आज भी ग्रामीणों को इंतजार है कि कब उनके गांवों के साथ बहती नदी व नालों के ऊपर पुल बनाए जाएं। जन प्रतिनिधि भी सिर्फ वोट लेने तक सीमित हैं और वोट बैंक की राजनीति के तहत आश्वासन ही देते हैं।
जिला चम्बा के विधानसभा क्षेत्र भरमौर की बड़ाग्रा पंचायत के आधी से अधिक दर्जन गांव के लोगों को जान जोखिम में डालकर नालों को पार करना पड़ता है। बड़ाग्रा पंचायत में गर्मियों में तो इस पलानी नाले का जलस्तर कम होने से ग्रामीण जैसे-तैसे नाले को पार कर लेते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में ग्रामीणों को न सिर्फ परेशानियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें जान भी जोखिम में डालनी पड़ती है। उफनते नाले पर जिस तरह ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं उससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
हैरत की बात यह है कि यहां प्रशासन ने भी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए है। प्रशासन इतने वर्षों से कुम्भकरण की नींद सोया हुआ है, जो जागने का बिल्कुल नाम नहीं ले रहा।
दो हजार आबादी वाली इस पंचायत के ग्रामीण प्रतिदिन बहते पानी के बीच से जान जोखिम में डालकर आवागमन करने को मजबूर हैं।
सरकार बदलती है, लेकिन ग्रामीणों की परेशानी का कोई हल नहीं होता: पिंकू
बड़ाग्रा के युवक मंडल प्रधान पिंकू कुमार ने बताया कि सरकार तो बदलती रहती है, लेकिन ग्रामीणों की परेशानी का कोई हल नहीं होता। हम सरकार से वर्षों पुराने प्रस्तावित पुल का निर्माण कार्य पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। बरसात और बर्फबारी के दिनों में इस पंचायत के लोगों को अपनी जान जोखिम में डालकर नालों को पार करना पड़ता है। ग्रामीणों को हर जरूरी सामान या काम के लिए नाले को पार कर दूसरे छोर पर जाना पड़ता है। बारिश के दिनों में जैसे ही पलानी नाले का जलस्तर बढ़ता है तो ग्रामीणों की जान पर संकट मंडराने लगता है।