हिमालयन जनजातियों का इतिहास एवं संस्कृति सम्मेलन का समापन
आवाज़ ए हिमाचल
ब्यूरो, धर्मशाला। भारत की जनजातियां देश के लगभग सभी राज्यों में फैली हुई है। अलग- अलग राज्यों में इनके रीति-रिवाज और रहन सहन भी एकदम अलग होते हैं। जनजातियां, भारतीय आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जनजातीय संस्कृति भारत की अमूर्त राष्ट्रीय विरासत का एक अभिन्न अंग है। यह उद्गार प्रोफेसर नारायण ने रविवार को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र मोहली खनियारा में इतिहास हिमालयन जनजातियों का इतिहास एवं संस्कृति सामाजिक स्थिति तथा निरंतरता विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए।
उन्होंने हिमालय तथा अन्य क्षेत्रों की जनजातियों के इतिहास तथा समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने भारतीय औपनिवेश काल तथा अंग्रेजों के शासन काल में विभिन्न जनजातियों के मानवीय अधिकारों तथा अजीविका के साधनों के बारे में भी विस्तार से बताया गया।
इस अवसर पर जनजातियों के विभिन्न समृद्व सांस्कृतिक पक्षों के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्रदान की गई। इससे पहले क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो धर्म प्रकाश वर्मा ने कहा कि भारत वैविध्य पूर्ण आदिवासी संस्कृति से संपन्न देश रहा है जिसने आधुनिकीकरण के दबाव के बावजूद अपनी परंपराएं और मूल्य आज भी सुरक्षित रखे हैं। उन्होंने बताया कि दो दिवसीय सम्मेलन में दो सौ से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
इस मौके पर प्रो कुलवंत राणा, अंकुश भारद्वाज, डॉ. मोहिन्दर, डॉ. चेत राम, डॉ. सकन्द मिश्रा, डॉ. बलराज बरार, संयोजक डॉ. राजकुमार, आयोजन सचिव राजेंद्र कुमार सहित संस्थान के 148 विद्यार्थी भाग ले रहे हैं।