आवाज़ ए हिमाचल
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उन जघन्य अपराधों को अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है, जो प्रकृति में निजी नहीं होते हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के साथ समझौते के आधार पर जघन्य और गंभीर अपराधों से संबंधित प्राथमिकी या शिकायतों को रद्द करने का आदेश देना एक “खतरनाक मिसाल” स्थापित करता है। ऐसा होने पर आरोपी से पैसे ऐंठने के लिए परोक्ष कारणों से शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम ने की पीठ ने कहा, “इसके अलावा, आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी हत्या, दुष्कर्म, दुल्हन को जलाने आदि जैसे गंभीर व जघन्य अपराधों के मामलों में भी मुखबिरों/शिकायतकर्ताओं को पैसा देकर और उनके साथ समझौता करके मुक्त हो सकते हैं।”
शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया, जिनके तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित अपराध के लिए मार्च 2020 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, “उन जघन्य या गंभीर अपराधों को अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है, जो प्रकृति में निजी नहीं होते हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।” शीर्ष अदालत ने कहा कि हत्या, बलात्कार, सेंधमारी, डकैती और यहां तक कि आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे अपराध न तो निजी हैं और न ही दीवानी। ऐसे अपराध समाज के खिलाफ हैं।