आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। राजधानी शिमला के नगर निगम चुनाव में प्रचार का शोर जरूर थमा है पर धडक़नें तेज हो गई हैं। सरकार की साख और विपक्ष की रणनीति दोनों दांव पर है। बड़ा इम्तिहान लोकसभा चुनाव के लिए भी हो रहा है। कांग्रेस ने विधानसभा में जिस मत प्रतिशत के साथ निगम की परिधि वाली तीनों विधानसभा में चुनाव जीता था, उनमें सेंधमारी भी भाजपा के लिए बड़ा मरहम साबित हो सकती है। फिलहाल, अब दो मई को मतदान होगा और चार को परिणाम सामने आएंगे। प्रचार में पसीना बहाने के बाद अब जीत किसके पलड़े में जाती है यह दिलचस्प रहने वाला है। दोनों ही राजनीतिक दलों ने ऐड़ी-चोटी का जोर यहां लगाया है। एक तरफ पूरी सरकार मैदान में डटी रही, तो दूसरी तरफ भाजपा ने किलेबंदी कर रखी थी। चार वार्ड ऐसे भी हैं, जहां माकपा ने मुकाबला त्रिकोणीय बना रखा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शिमला के लगभग सभी वार्डों में चुनावी सभाएं की हैं। शिमला नगर निगम से कांग्रेस बीते दस सालों से दूर है और इस बार पार्टी वापसी करती है तो इस जीत का सेहरा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के सिर बंधना तय है।
कांग्रेस ने प्रचार के शुरूआती दौर में पहले संगठन और उसके बाद सरकार का इस्तेमाल किया। संगठन के अलग-अलग पदाधिकारियों को वार्ड की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन पार्टी की प्रचार में शुरुआत बेहद कमजोर रही और इसे देखते हुए पहले मंत्रियों और उसके बाद खुद मुख्यमंत्री प्रचार में कूद गए। भाजपा की बात करें तो प्रचार में कहानी यहां थोड़ी जुदा रही है। भाजपा ने चुनाव के बीच ही प्रदेशाध्यक्ष को बदल दिया। सुरेश कश्यप की जगह डा. राजीव बिंदल के साथ चुनावी रणनीति तैयार करने वाली पार्टी ने शिमला में पूर्व सीएम जयराम ठाकुर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का भरपूर इस्तेमाल किया है।
अन्य दलों की बात करें तो माकपा ने समरहिल, टुटू, कृष्णानगर और सांगटी में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इन सभी वार्डों में मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है। आम आदमी पार्टी का असर इन चुनाव में ज्यादा नहीं दिख रहा है। लेकिन कुछेक वार्डों पर पार्टी के प्रत्याशी नुकसान करने की स्थिति में जरूर हैं।