चार अध्यापकों  को मिला ‘कला गुरु सम्मान’

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: धर्मशाला में अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती ने किया सम्मानित

 

 

 

आवाज ए हिमाचल 

दीपक गुप्ता, शाहपुर। साहित्य एवं कला के संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने वाली अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती की कांगड़ा इकाई की ओर से अपने 10वें कार्यक्रम में गुंजन रेडियो, सिद्धबाड़ी (धर्मशाला) के सभागार में साहित्य एवं कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के रचना धर्मियों को एक गरिमामयी समारोह में सम्मानित किया गया। सबसे पहले संस्कार भारती की कांगड़ा इकाई के संयोजक डॉ. कंवर करतार एवं डॉ. जनमेजय गुलेरिया ने सबसे पहले संस्था का परिचय करवाया। इस कार्यक्रम में द्रोणाचार्य कॉलेज रैत के कार्यकारी प्रबंधक निदेशक बलविंदर सिंह पठानिया ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की और ‘कला गुरु सम्मान’ पाने वाले सभी प्रबुधजनों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि जो हम समाज को देते हैं वही वापिस लेते भी हैं, इसलिए कुछ भी बोलने, करने से पहले जरूर विचार करना चाहिए। हमारे कर्म ही हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब बनते हैं। इस सम्मान समारोह में साहित्य, शिक्षा एवं कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते हुए संगीत प्रो. वन्दना भडवार, प्रो. जितेन्द्र सिंह, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी प्रभात शर्मा और साहित्य एवं शिक्षाविद् के रूप में ख्याति प्राप्त रमेश चन्द्र ‘मस्ताना’ को ‘कला गुरु सम्मान’ से गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन डॉक्टर आदिति ने किया। वहीं संयोजक डॉक्टर कवंर करतार ने अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती की कांगड़ा इकाई का परिचय करवाया। इसी के साथ उन्होंने कला की 64 कलाओं की जानकारी दी, जिसमें दृश्य कला और श्रव्य कला पर विचार रखे। इसके बाद मुख्यअतिथि द्रोणाचार्य कॉलेज रैत के कार्यकारी प्रबंधक निदेशक बलविंदर सिंह पठानिया को संस्था की ओर से सम्मानित किया गया। इसके बाद संस्था की संरक्षक प्रो चंद्र रेखा डडवाल ने चारों सम्मानित होने वाली विभूतियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है, जिसकी आज भी प्रासंगिकता है। कला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन जीना सबसे बड़ी कला है। आज इंटरनेट पर सभी को जानकारियां तो मिल जाती है लेकिन भावनाओं मुश्किलों से निकलने का ज्ञान तो गुरुओं से ही मिलता है। इसके बाद गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बविता ओबरॉय ने अपने गुरु प्रभात शर्मा संक्षिप्त परिचय दिया। बताया कि उनके पढ़ाई अधिकतर बच्चे प्रधान और विभिन्न विभागों में अधिकारी बने हैं। प्रभात शर्मा ने 1977 से लेकर 2012 राजस्व विभाग में सेवाए देने के साथ शिक्षा विभाग में लंबे समय तक सेवाएं दी और वर्तमान में स्वतंत्र रूप से साहित्य सृजन कर रहे हैं।

इसके बाद रमेश चंद्र ‘मस्ताना’ के शिष्य सोनू ठाकुर ने अपने गुरु का संक्षिप्त परिचय दिया। सोनू ठाकुर ने बताया कि रमेश चंद्र ‘मस्ताना’ अब तक लगभग दर्जन भर पुस्तकें लिख कर एवं सम्पादित कर प्रकाशित करवा चुके हैं। इनमें झांझर छणकै (हिमाचली पहाड़ी दोहे) आस्था के दीप: लोक विश्वास, लोकमानस के दायरे, पांगी घाटी की पगडंडियां एवं परछाइयां, पक्खरु बोलै (हिमाचली पहाड़ी कविता संग्रह), काग़ज़ के फूलों में, मिट्टिया दी पकड़ आदि पुस्तकें ‘मस्ताना’ हिंदी एवं हिमाचली-पहाड़ी साहित्य को दे चुके हैं। इसी के साथ-साथ आकाशवाणी के कई केंद्रों से उनकी रचनाओं का लगातार प्रसारण होता ही रहता है। इसी के साथ रमेश चंद्र मस्ताना के शिष्य, हिमाचल के प्रसिद्ध लोकगायक और सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार द्वारा फेलोशिप प्राप्त कर चुके विक्रांत भद्राल ने अपने गुरु को समर्पित एक गुरु बंदना सुना कर सभी को मंत्रमुग्ध किया।

इसके बाद कला गुरु सम्मान से सम्मानित वंदना भडवार का परिचय उनकी शिष्य संजना ने उनका परिचय दिया। संजना ने बताया उनके दर्जनों छात्र संगीत के क्षेत्र में देश विदेश के बड़े बड़े मंचों पर काम कर रहे हैं। इसके बाद प्रोफेसर जितेंद्र सिंह की शिष्या पूजा ने उनका परिचय करवाया। बताया कि जितेंद्र जी के विद्यार्थी आज कला के क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं में सम्मानजनक पदों पर काम कर रहे हैं।

इसके बाद सभी अध्यापकों को प्रशस्ति पत्र, श्रीफल और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। इस दौरान बविता ओबराय ने अपने गुरु प्रभात शर्मा, संजना ने अपने गुरु वंदना भडवार, सोनू ठाकुर ने अपने गुरु ने रमेश चंद्र मस्ताना और पूजा शर्मा ने अपने गुरु प्रोफ़ेसर जितेंद्र सिंह को श्रीफल देकर सम्मानित किया।

 

 

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