आवाज ए हिमाचल
16 अक्टूबर।हिमाचल प्रदेश में हर साल मानसून में हो रही भारी तबाही से सबक लेते हुए केंद्रीय विवि (सीयू) ने आपदाओं से निपटने के लिए अहम कदम उठाया है। सीयू ताइवान के एनजीओ त्जु ची की तर्ज पर विशेष आपदा प्रतिक्रिया किट तैयार करने जा रहा है। यह किट आपात स्थितियों में बिस्तर, स्ट्रेचर, कुर्सी या पर्दे के रूप में इस्तेमाल की जा सकेगी। इसमें खाने-पीने की जरूरी वस्तुएं भी रखी जाएंगी। किट को पोर्टेबल बैग के रूप में तैयार किया जाएगा, ताकि इसे कहीं पर भी आसानी से ले जाया जा सके। सीयू में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला न्यूनीकरण रणनीतियां जोखिम से लचीलेपन तक) के उद्घाटन पर कुलपति (वीसी) सत प्रकाश बंसल ने यह जानकारी दी।तीन दिवसीय इस कार्यशाला में आपदाओं से निपटने के तैयारियों पर मंथन किया जाएगा। कार्यशाला में कई विदेशी वैज्ञानिक ऑनलाइन जुड़कर अपने सुझाव देंगे। वीसी ने बताया कि किट तैयार करने के साथ ही विवि जनवरी से आपदा प्रबंधन विभाग में कोर्स भी शुरू करेगा। छह माह के इस कोर्स में तीन माह का प्रायोगिक प्रशिक्षण शामिल रहेगा। कोर्स में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिन्होंने आपदा के समय सक्रिय रूप से कार्य किया है। कुलपति बंसल ने बताया कि बादल फटने और भूस्खलन जैसी आपदाओं ने राहत एवं बचाव कार्यों की कमजोरियों को उजागर किया है। इसलिए अब विवि ऐसा नवाचार कर रहा है, जो भविष्य में राहत कार्य और प्रभावी बनाएगा। कित त्वरित राहत, अस्थायी जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगी। किट प्रो. दीपक पंत की देखरेख में तैयार होगी।तीन दिन की कार्यशाला सीयू और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) कांगड़ा की ओर से एस्टन विश्वविद्यालय (यूके) और नेशनल डोंग ह्वा विश्वविद्यालय (ताइवान) के तकनीकी सहयोग से करवाई जा रही है। कुलपति ने कहा कि कार्यशाला के निष्कर्षों के आधार पर ब्लूप्रिंट तैयार कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाएगी। प्रो. दीपक पंत ने कहा कि आपदा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान और सामुदायिक भागीदारी के बीच मजबूत सेतु बनाना जरूरी है।
धर्मशाला। धौलाधार की बर्फीली चोटियां अब हरियाली ओढ़ने लगी हैं, लेकिन यह खूबसूरती नहीं, जलवायु संकट का संकेत है। सीयू धर्मशाला के पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान संकाय के डीन प्रो. दीपक पंत के अनुसार यह बदलाव चिंताजनक है। पहाड़ों पर उगती घास बर्फ को टिकने नहीं देगी। इससे भविष्य में प्रदेश में पेयजल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन गहरा सकता है। अमर उजाला से विशेष बातचीत में प्रो. पंत ने कहा कि पहाड़ों की बेतरतीब कटिंग और मानवीय लापरवाही के कारण मौसम में इतना बदलाव आया है कि अब मई-जून में वह बारिश हो रही है, जो पहले जुलाई-अगस्त में होती थी। अगर यह क्रम जारी रहा तो हिमालय की पारिस्थितिकी गंभीर खतरे में पड़ जाएगी। कूड़े-कचरे का अनुचित निपटान भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण बन गया है। जमीन में दबाए गए कचरे से निकलने वाली मिथेन गैस आग की घटनाओं और तापमान वृद्धि को बढ़ावा दे रही है। यही गैस बाद में मौसम के पैटर्न को असामान्य बना रही है।
प्रो. पंत ने कहा कि तापमान में लगातार बढ़ोतरी और बारिश के बदलते स्वरूप से धौलाधार रेंज के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे शुरुआत में पानी बढ़ेगा, लेकिन लंबे समय में जल संसाधन घटेंगे। यह आने वाले वर्षों में प्रदेश के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धौलाधार के पहाड़ों का हरा होना दरअसल जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों का ठोस प्रमाण है। यह अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को तोड़ रहा है, जो आगे चलकर गंभीर पर्यावरणीय और मानवीय संकट को जन्म दे सकता है। उल्लेखनीय है कि विवि में पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान संकाय के डीन प्रो. दीपक पंत आपदा न्यूनीकरण एवं रणनीतियांः जोखिम से लचीलेपन तक और प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं के विरुद्ध तैयारी को सुदृढ़ बनाना विषय पर शुरू हुई तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का नेतृत्व कर रहे हैं।