आवाज़ ए हिमाचल
01 दिसंबर।सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने अपनी मांगों व तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर किसानों के दिल्ली मार्च का पुरजोर समर्थन किया है। राज्य कमेटी ने केंद्र व हरियाणा सरकार द्वारा किए जा रहे किसानों के बर्बर दमन की कड़ी निंदा की है। राज्य कमेटी के आह्वान पर किसानों के आंदोलन के समर्थन में प्रदेश भर के हज़ारों मजदूरों द्वारा राज्यव्यापी प्रदर्शन करके किसानों के साथ एकजुटता प्रकट की गई।
यह प्रदर्शन शिमला,हमीरपुर,ऊना,मंडी,कुल्लू,नाहन,सोलन,बिलासपुर,टापरी,शिमला,रामपुर व रोहड़ू में किये गए। उन्होंने मजदूरों-किसानों से किसानों के समर्थन में दिल्ली कूच करने की तैयारियों का आह्वान किया है। इन प्रदर्शनों में हिमाचल किसान सभा के कार्यकर्ता भी शामिल रहे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि मोदी व खट्टर की भाजपा सरकारें किसानों को कुचलने पर आमादा हैं जोकि बेहद निंदनीय है। उन्होंने इन सरकारों को तानाशाह करार दिया है। उन्होंने कहा है कि किसान आंदोलन को दबाने से स्पष्टतः ज़ाहिर हो चुका है कि ये दोनों भाजपा सरकारें पूंजीपतियों व नैगमिक घरानों के साथ हैं व उनकी मुनाफाखोरी को सुनिश्चित करने के लिए किसानों की आवाज़ को दबाना चाहती हैं जिसे देश का मजदूर-किसान कतई मंज़ूर नही करेगा। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है।
उन्होंने देश के किसानों को ऐतिहासिक आंदोलन के लिए बधाई दी है जिसमें करोड़ों किसान शामिल हो चुके हैं। लाखों किसान ट्रेक्टरों के साथ आंदोलन के मैदान में हैं। सरकार की लाठी,गोली,आंसू गैस,सड़कों पर खड्डे खोदना,बैरिकेड व पानी की बौछारें भी किसानों के होंसलों को पस्त नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने किसानों के साथ मजदूरों की एकजुटता का आह्वान किया है। उन्होंने मजदूरों से अपील की है कि वे भारी संख्या में आंदोलन के मैदान में कूदें। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को बदनाम करने के घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इस आंदोलन में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी,कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी – विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी।
उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से एपीएमसी जैसी कृषि संस्थाएं बर्बाद हो जाएंगी,न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा खत्म हो जाएगी,कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी,जमाखोरी व मुनाफाखोरी होगी जिस से न केवल किसानों को नुकसान होगा अपितु आम जनता को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी। यह सब कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। आज कृषि भारी संकट में है। उसे मदद देने के बजाए केंद्र सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। न तो कृषि बजट में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानों की सब्सिडी में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानी के उपकरण किसानों को सरकार की ओर से मुहैय्या करवाए जा रहे हैं,न ही किसानों के कर्ज़े माफ किये जा रहे हैं और न ही उन्हें लाभकारी मूल्य दिया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें पिछले दो दशकों से केंद्र सरकार के मेजों पर धूल फांक रही हैं व उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। इसलिए बेहद जरूरी हो गया है कि देश के मजदूर-किसान पूर्ण एकता बनाकर इस सरकार की चूलें हिलाएं व इसकी पूंजीपति व कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर रोक लगाएं।