अभिषेक मिश्रा बिलासपुर
29 अक्तूबर। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री व विधायक श्री नयना देवी जी राम लाल ठाकुर ने कहा कि एयर इंडिया को बेच कर देश का भला नहीं होगा। देश के प्रधानमंत्री जी को बताना होगा कि देश की अमूल्य पूंजी से खड़ी की गई पब्लिक सेक्टर की संपत्तियों को इस तरह से बेचना देश के समाजवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा को ठेंगा दिखाना है। उन्होंने कहा अभी हाल ही में टाटा संस ने एयर इंडिया को खरीदने की बोली को जीत लिया है। यानी अब सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया टाटा संस की हो चुकी है। जबकि एयर इंडिया को आज से 68 वर्ष पहले भारत सरकार ने वर्ष 1953 में टेक ओवर कर लिया था। ऐसे में भारत सरकार को क्या आवश्यकता पड़ गई कि एयर इंडिया को टाटा ग्रुप के पास दोबारा भेज दे। बड़ा सवाल यह है कि क्या टाटा संस का प्रबंधन का केंद्र सरकार से ज्यादा बेहतर है।
उन्होंने कहा कि अगर तथ्यों पर बात की जाए तो एयर इंडिया की स्थापना 1932 में टाटा एयर सर्विसेज के तौर पर हुई थी, जिसका नाम बाद में बदलकर टाटा एयरलाइंस कर दिया गया था। एयरलाइन की शुरुआत भारतीय बिजनेस के दिग्गज जे आर डी टाटा ने की थी। राम लाल ठाकुर ने कहा दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इसी एयरलाइन ने रॉयल एयर फोर्स की उनकी सेना की आवाजाही, सप्लाई ले जाने, शरणार्थियों को बचाने और एयरक्राफ्ट के रखरखव में मदद भी की थी यह ब्रिटिश इंडिया की बात है। वर्ष 1953 को भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट को पास किया, और टाटा संस से एयरलाइन में मालिकाना हक खरीद लिया। हालांकि, जे आर डी टाटा 1977 तक चेयरमैन के तौर पर बने रहे। कंपनी का नाम बदलकर एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड कर दिया गया,
वर्ष 1962 में एयर इंडिया पड़ा नाम 21 फरवरी 1960 को, एयर इंडिया इंटरनेशनल ने अपने पहले बोइंग 707-420 को बेड़े में शामिल किया। एयरलाइन ने 14 मई 1960 को न्यू यॉर्क को सेवाएं शुरू कर दी थी। 8 जून 1962 को एयरलाइन के नाम को आधिकारिक तौर पर एयर इंडिया कर दिया गया, और 11 जून 1962 को एयर इंडिया दुनिया की पहली ऑल जेट एयरलाइन बन गई थी। वर्ष 2000 में, एयर इंडिया ने शांघाई, चीन को सेवाओं की शुरुआत ती। साल 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरालइंस को एयर इंडिया लिमिटेड का मर्जर किया गया। वर्ष 2017 में सरकार से मिली निजीकरण की मंजूरी के बाद वर्ष 2017 में केंद्रीय कैबिनेट ने एयर इंडिया के निजीकरण को मंजूरी दी। साल 2018 में एयर इंडिया को बेचने की कोशिश की गई, जो असफल रही। अपने असफल प्रयास के बाद, सरकार ने पिछले साल जनवरी में विनिवेश प्रक्रिया को फिर से शुरू किया और एयर इंडिया में एयर इंडिया की 100 प्रतिशत,
हिस्सेदारी सहित राज्य के स्वामित्व वाली एयरलाइन में अपनी 100 प्रतिशत वाली एक्सप्रेस लिमिटेड और एयर इंडिया एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में 50 फीसदी इक्विटी बेचने के लिए बोलियां आमंत्रित कीं थी। अब मजे की बात तो यह है कि एयर इंडिया पर टोटल डेट 46262 करोड़ का है जबकि यह आंकड़ा मार्च 2021 तक का है। जबकि अभी कुल डील 18 हज़ार करोड़ में कई गई। तो ऐसे में बाकी का घाटा कहाँ से पूरा किया जाएगा और जबकि यही आंकड़ा अगस्त 2021 के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 61562 करोड़ पर पहुंच गया है तो ऐसे में एयर इंडिया को औने पौने दामों पर बेच कर केंद्र सरकार क्या संदेश दे रही है। इसी संदर्भ में यही हिमाचल की बात की जाए तो बल्ह मंडी में बनने वाला एयर पोर्ट किसानों की उपजाऊ जमीन पर बनाया जा रहा है, यही हाल जुब्बरहटी शिमला, भुंतर कुल्लू और गगल कांगड़ा एयर पोर्ट की एक्सपेंशन प्लान का है
तो क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री अब यह बताने की चेष्टा करेंगे कि हिमाचल प्रदेश के बनने वाले एयर पोर्ट कौन सी निजी कम्पनी के साथ दलाली शुरू की जाएगी। एक तरह तो कांग्रेस की सरकारों ने देश को खड़ा करने वाले बड़े बड़े नवरत्नों को बनाया और दूसरी तरह केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकारें इन सम्पत्तियों को बेचने में लगी है, यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से भाजपा की लूट नहीं तो और क्या है। राम लाल ठाकुर ने यह भी कि हिमाचल प्रदेश में नए एयर पोर्ट बनाने है या फिर पुराने एयर पोर्टो के विस्तारीकरण की योजना है तो उस पर देश के प्रधानमंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री व प्रदेश में मुख्यमंत्री को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए कि प्रदेश के किसानों की जमीनों को निजी कम्पनियों को नहीं बेचेंगे।