आवाज़ ए हिमाचल
नादौन। अगर जीव भगवान की शरण में चला जाए, तो उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। भगवान की कृपा असंभव को संभव बना देती है। महर्षि मार्कंडेय भगवान की शरणागति का ज्वलंत उदाहरण है। मार्कंडेय की आयु 12 वर्ष मात्र की हीसुनिश्चित थी, परन्तु उन्होंने भगवान की भक्ति और शरणागति से अपना जीवन महान बनाया। एक महापुरुष और दीर्घायु बने।
यह विचार नादौन के समीप फतेहपुर (भूंपल) में स्थित परम पूज्य मौनी बाबा कुटिया में चल रही नृसिंह पुराण की कथा में ऋषिकेश से आए हुए स्वामी नित्यानंद गिरि ने व्यक्त किए। स्वामी ने आगे बताया कि जो भगवान की शरण में रहता है, वह अहंकार रहित होता है। गुरु और गोविंद की कृपा से ही हम कुछ सीख सकते हैं। मनुष्य में जो भी गुरुजनों, संतों, ईश्वर की कृपा है, उसे अगर वह अपना पुरुषार्थ मानेगा तो अहंकार के वशीभूत और पतित हो जाएगा। इसलिए कोई अच्छी वस्तु और सिद्धि हमें मिली है, वह गुरु गोविंद की कृपा से ही सुलभ हुई है, ऐसा मानकर सदा ही उनके प्रति विनम्र भाव रखकर कृतज्ञता ज्ञापित करते रहे। हृदय से उनको स्मरण करते रहे तथा उनके प्रति शरणागत रहे। इसी से मनुष्य श्रेष्ठ और महान बन सकता है। उसकी विद्या फलीभूत हो जाती है। ब्रह्मा की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए स्वामी ने बताया कि ब्रह्मा की उत्पत्ति भगवान की नाभि से कमल और कमल से उनकी उत्पत्ति हुई है। संसार से अनासक्त होकर हम मुक्त हो सकते हैं। अगर हम विषयों से आसक्त हो जाते हैं, तो हम काम क्रोध आदि विकारों में गिरना पड़ता है। कथा के अंत में डॉ रतन चंद शास्त्री ने सबका धन्यवाद किया