अखंड सुहाग एवं सौभाग्य का व्रत है : करवा-चौथ

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  .…………रमेश चन्द्र ‘मस्ताना’
 साहित्य-सम्पादक 
 आवाज़ ए हिमाचल 
    (मीडिया ग्रुप)
वेदों और पुराणों में कार्तिक मास की महिमा का वर्णन करते हुए  “ना कार्तिक समो मासो” कहते हुए यह माना गया है कि कार्तिक मास के समान दूसरा कोई मास नहीं है। पूरे वर्ष के बारह महीनों में जिन चार मासों – – – – –  सावन, भादों, आश्विन और कार्तिक मास को  “चातुर्मास” की संज्ञा दी गई है और यह चारों महीने जहाँ दक्षिणायन-पक्ष के प्रारम्भिक और महत्वपूर्ण महीने होते हैं, वहाँ कार्तिक मास सभी पुन्यों का फल देने वाला तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों को देने वाला होता है।  कार्तिक मास में जहाँ दीपावली व भैय्या – दूज का त्योहार प्रमुख व पंच भीष्मों में तुलसी का पूजन विशेष होता है, वहाँ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बिना अन्न-जल ग्रहण किए अखंड सुहाग का प्रतीक  “करवा-चौथ”  समस्त सुहागिनों की अटूट आस्था का व्रत-पूजन है। यूं तो प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश और चन्द्रमा के व्रत को बहुत पुन्यदायी माना गया है परन्तु कार्तिक मास का करवा चौथ का यह व्रत अखंड सुहाग का प्रतीक माना गया है और इसे  “सुहाग – व्रत” के नाम से भी जाना जाता है।
सम्पूर्ण भारतवर्ष के अधिकांश हिस्सों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी इस दिन समस्त सुहागिनें अपने सुहाग की लम्बी आयु और मंगल कामना के लिए बिना अन्न-जल ग्रहण किए इस व्रत को पूरी आस्था एवं विधि-विधान से सम्पन्न करती हैं। प्रातः  तड़के ही “तारों की छांव में”  फल, मिठाई, फैंणियों आदि का अल्पाहार करके, जिसे  “सरगी” कहा जाता है, इस व्रत का शुभारंभ किया जाता है। इस व्रत के मध्य फिर दिन में बनाव-शिंगार एवं व्रत-पूजन की सामग्री को एकत्रित करने का ही कार्य किया जाता है। विशेष रूप से नव-परिधान और मैंहन्दी लगाने का कार्य सर्व-प्रमुख होता है। दिन के समय कोई भी ऐसा काम जिससे चोट इत्यादि लगने का भय हो अथवा सूई-धागे का काम बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। 
व्रत के पारण हेतु एक करवे के साथ एक बड़ी और तीन छोटी सुहागियां, जिनमें बड़ी सुहागी सास के लिए और उसमें बहू के द्वारा वस्त्राभूषण व अन्य सुहाग की सामग्री होती है, के साथ अन्य सुहागियों में सुहाग – शिंगार का सामान रखा जाता है। वर्तमान में चार सुहागियों की अपेक्षा सुहागिनें अपने घर-परिवार व अपनी मित्रनी-धर्म बहनों आदि के लिए, उसी हिसाब से सुहागियां तैयार करती हैं और व्रत के पारण पर या दूसरे दिन सभी को सादर भेंट करती हैं। यह सुहाग – व्रत रात्रि को चन्द्रमा के निकलने पर ही सम्पूर्ण किया जाता है और उस समय चन्द्रमा को अर्घ्य देने के लिए, जो सामान तैयार किया जाता है, उसमें बारह पुड़ियां सोलह-सोलह चावल के साबूत दानों की, सोलह-सोलह हरी दुर्बा के भी बारह गट्ठू  तैयार किए जाते हैं। दिन के समय सुहागिनें घर-परिवार में अथवा आस-पड़ोस में जाकर सामूहिक रूप से करवा चौथ के व्रत की महिमा-कथा का पाठन एवं श्रवण भी करती हैं। 
करवा चौथ का यह व्रत जहाँ अखंड सौभाग्य का प्रतीक है, वहाँ यह समस्त कष्टों के निवारण का भी प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि शिव जी ने इस व्रत को कष्टों के निवारण हेतु पार्वती जी को करने का सुझाव दिया था। यह भी माना जाता है कि श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन की अनुपस्थिति में द्रौपदी के कष्टों के निवारण हेतु इस व्रत को करने के लिए कहा था और साथ ही यह भी माना जाता है कि द्रौपदी के इस व्रत के परिणाम स्वरूप ही महाभारत के युद्ध में पांडवों को जीत प्राप्त हुई थी। इस व्रत के पारण में यदि भूल-चूक हो जाए तो अनिष्ट होने की संभावना भी रहती है, जिसके लिए एक ब्राह्मण कन्या का उदाहरण दिया जाता है।
वह कन्या सात भाइयों की इकलौती बहन थी और उसे भूख से व्याकुल देखकर भाइयों ने पिपल वृक्ष की ओट में आग जलाकर उसे यह कह दिया कि चांद निकल आया है और आप व्रत का पारण कर भोजन कर लो। उसका ऐसा करने पर उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई। बाद में उसके रुदन और विलाप को सुनकर इन्द्राणी  (शची)  ने उसे वर्ष भर की बारह कृष्ण पक्ष की चतुर्थियों के व्रत पूर्ण रूप से विधि-विधान के साथ करने का परामर्श दिया था और उसके फलस्वरूप ही उसे उसके पतिदेव पुन: जीवित होकर प्राप्त हुए थे।
 
इस प्रकार से करवा चौथ के इस व्रत में शिव जी, गणेश, कार्तिकेय एवं चन्द्रमा की पूजा-अर्चना के साथ चन्द्रमा के निकलने पर सुहागिनें सोलह शिंगार करके, पूजा के सारे सामान के साथ बारह बार पानी का कुम्भ या गड़बी भर कर चन्द्रमा को अर्घ्य देती हैं और चन्द्रमा के साथ-साथ पतिदेव को छलनी के द्वारा देखने के उपरांत ही पतिदेव के हाथों पानी पीकर फिर भोजन करके और करवाकर व्रत का पारण करती हैं ।  सुहागिनें जहाँ पति की लम्बी आयु व कष्ट निवारण के लिए इस व्रत को करती हैं, वहाँ वर्तमान में युवा लड़कियां भी सुन्दर वर की प्राप्ति की कामना में भी इस व्रत को बड़े चाव के साथ रख रहीं हैं। आवाज़ ए हिमाचल एवं आवाज ए शाहपुर के समस्त समूह की ओर से सभी सुहागिनों को इस पावन पर्व एवं अखंड सौभाग्य के प्रतीक “करवा चौथ” के व्रत की ढेरों बधाइयाँ और अनन्त मंगल कामनाएँ  । 
 

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